नई दिल्लीः जी हां, यह सच है। यह विशालकाय भारतीय कंपनी अपने कर्मचारियों को सैलरी देने की भी स्थिति में नहीं है और लगातार कर्ज लेती जा रही है।
यह कंपनी सरकारी सार्वजिनक प्रतिष्ठान एयर इंडिया है। इसकी माली हालत इतनी गई बीती है कि कई महीनों से यह अपने कर्मचारियों को सैलरी भी नहीं दे पा रही है। हर महीने वह देर से सैलरी देती है और सरकार के पास हाथ फैलाती है। इस कंपनी को इतना घाटा हो रहा है कि सरकार को समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करे।
इस बार वह मई महीने की सैलरी अब जाकर दे पाई है और वह भी बैंकों से लोन लेकर। उसे बैंकों ने कर्मचारियों को 200 करोड़ रुपए का लोन दिया ताकि वह उन्हें दे सके। इसके पहले उसे भारत सरकार ने 250 करोड़ रुपए दिया थे ताकि वह अन्य खर्च पूरा कर सके। इस महीने एयर इंडिया ने सैलरी तो दे दी लेकिन वह अन्य भत्ते वगैरह नहीं दे पाई है।
2005-06 में उसे 75 करोड़ रुपए का लाभ हुआ था और अब उसे पिछले साल 8,500 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। यह घाटा कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। अब यह कंपनी लगातार नीचे जा रही है और पांचवें नंबर पर पहुंच गई है।
एयर इंडिया सिविल एविएशन मिनिस्ट्री के घटिया कामकाज का शिकार हो गई। नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों ने इसके साथ जबर्दस्त बंदरबांट किया। लाभ में चल रही इंडियन एयरलाइंस को घाटे में चल रही एय़र इंडिया के साथ मिला दिया गया जिससे घाटा और बढ़ गया। इतना ही नहीं एयर इंडिया के लाभ वाले रूट प्राइवेट एयरलाइंसों को “ले देकर” थमा दिए गए।
यह कंपनी सरकारी सार्वजिनक प्रतिष्ठान एयर इंडिया है। इसकी माली हालत इतनी गई बीती है कि कई महीनों से यह अपने कर्मचारियों को सैलरी भी नहीं दे पा रही है। हर महीने वह देर से सैलरी देती है और सरकार के पास हाथ फैलाती है। इस कंपनी को इतना घाटा हो रहा है कि सरकार को समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करे।
इस बार वह मई महीने की सैलरी अब जाकर दे पाई है और वह भी बैंकों से लोन लेकर। उसे बैंकों ने कर्मचारियों को 200 करोड़ रुपए का लोन दिया ताकि वह उन्हें दे सके। इसके पहले उसे भारत सरकार ने 250 करोड़ रुपए दिया थे ताकि वह अन्य खर्च पूरा कर सके। इस महीने एयर इंडिया ने सैलरी तो दे दी लेकिन वह अन्य भत्ते वगैरह नहीं दे पाई है।
2005-06 में उसे 75 करोड़ रुपए का लाभ हुआ था और अब उसे पिछले साल 8,500 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। यह घाटा कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। अब यह कंपनी लगातार नीचे जा रही है और पांचवें नंबर पर पहुंच गई है।
एयर इंडिया सिविल एविएशन मिनिस्ट्री के घटिया कामकाज का शिकार हो गई। नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों ने इसके साथ जबर्दस्त बंदरबांट किया। लाभ में चल रही इंडियन एयरलाइंस को घाटे में चल रही एय़र इंडिया के साथ मिला दिया गया जिससे घाटा और बढ़ गया। इतना ही नहीं एयर इंडिया के लाभ वाले रूट प्राइवेट एयरलाइंसों को “ले देकर” थमा दिए गए।
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