Thursday, August 16, 2012

राहत शिविरों की ये हकीकत आपको झकझोर देगी

गुवाहटी से महज 200 मीटर दूर रीलिफ कैंप चालू है लेकिन आज भी सहायता के लिए तरस रहे हैं शरणार्थी। आप यह सोचकर ही सिहर जाएंगे कि यहां दवाओं तक की किल्लत है। यहां तक सीबीआई की स्पेसल टीम असम के दंगों की जांच कर रही है। चिरंग जिले में डर और अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। आलम यह है कि राहत शिविरों में शरणार्थी आज भी दवाओं और सहायता की राह देख रहे हैं।

सभी शरणार्थी अपने घरों को लौटना चाहते हैं लेकिन सुरक्षा के डर से कोई तैयार नहीं है। सरकार की भी नजर इनके दर्द पर नहीं पड़ रही है। कोंकराझार के तारांडो मुशारी अपना दर्द बयां करते हुए कहते हैं कि हमारे अपनों को तो वहां जिन्दा जला दिया गया। हम अभी घर तक नहीं जा सकते हैं। आज हम अपने ही घर से बेघर हुए हैं। किसी तरह की कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है।

अब सरकारी आंकड़ों की बात करें तो 2 हजार बच्चे गंभीर रूप से बीमार हैं। यहां तक करीब 2500 गर्भवती महिलाएं शरणार्थी शिविर में हैं। बसाइगांव के राहत शिविर में करीब 100 बच्चे पीड़ित हैं और 8 गर्भवती महिलाएं बहुत ही खराब परिस्थिति में रह रहे हैं। इनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। ये सभी दवाओं तक से वंचित हैं। असम सरकार ने सीबीआई जांच और सेना की अतिरिक्त मांग करके अपनी इतिश्री कर ली। इन शरणार्थियों का दर्द या तो सरकार के कानों तक पहुंच नहीं पा रही है या सरकार संवेदनहीन हो चुकी है।

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