Friday, August 3, 2012

इस छोरे ने रचा इतिहास, निकाला लाइलाज बीमारी का अचूक रामबाण


जयपुर. प्रदेश के एक युवा शोधकर्ता व उनके मेंटर्स ने अमेरिका में दिमाग के कैंसर के इलाज को नया आयाम देते हुए इसके एक जेनेटिक कारण की खोज की है। न्यूयॉर्क के कोलंबिया यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर (सीयूएमसी) स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर जेनेटिक्स में बतौर पोस्ट डॉक्टोरल शोधार्थी काम कर रहे डॉ. देवेन्द्र सिंह, स्टडी लीडर डॉ. एंटोनियो इवैरॉन और डॉ. एना लेजोरेला की टीम के एक प्रमुख सदस्य हैं। इस वैज्ञानिक दल की खोज से पहली बार पता चला है कि सबसे आम और खतरनाक किस्म का ब्रेन कैंसर ग्लिओब्लास्टोमा दो जीन्स के संयोग से होता है।
ऐसे किया शोध :
चूहों पर की गई शुरुआती शोध में पता चला है कि जेनेटिक एब्रेशन के दौरान पैदा हुए नए प्रोटीन को निशाना बना सकने वाली दवाएं ग्लिओब्लास्टोमा की बढ़त को कम करती हैं। इससे कैंसर रोग की रिसर्च और इससे जुड़ी दवाओं की रिसर्च को एक नया आयाम मिलेगा। सीयूएमसी की यह रिसर्च साइंस जर्नल में हाल ही में प्रकाशित हुई है।
सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ के छात्र रहे हैं डॉ. देवेंद्र
32 वर्षीय जीव वैज्ञानिक डॉ. देवेन्द्र सिंह मूलत: हनुमानगढ़ के रहने वाले हैं। वे 1990 से 1997 के बीच चित्तौड़गढ़ स्थित सैनिक स्कूल के छात्र थे। फिर उन्होंने हैदराबाद के सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी से भी पढ़ाई की। वे 2009 से अमेरिका की न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर जेनेटिक्स में बतौर जीव वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं।
दवाओं में होगा खास बदलाव
डॉ. देवेन्द्र सिंह ने बताया कि हमारा शोध दो तरीकों से महत्वपूर्ण है। क्लीनिकल नजरिए से देखें तो हमने ब्रेन कैंसर की दवाओं में महत्वपूर्ण बदलाव की दिशा खोली है। वहीं, शोध के नजरिए से तो हमने ट्यूमर उत्पन्न करने वाले म्यूटेशन का पहला उदाहरण खोजा है जो कोशिका विभाजन को सीधे तौर पर प्रभावित कर क्रोमोजोम्स को अस्थिर करता है।

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