श्रीगंगानगर.रील लाइफ का ‘टाइगर’ रियल लाइफ में श्रीगंगानगर का
जांबाज रवींद्र कौशिक है। स्कूल-कॉलेज के स्टेज शो में अक्सर जासूस की
भूमिका निभाने वाले कौशिक का सजीव किरदार रॉ के एक आला अधिकारी को लखनऊ में
यूथ फेस्टिवल के दौरान इतना पसंद आया कि कौशिक, नबी अहमद बनकर श्रीगंगानगर
से 1975 में पाकिस्तान पहुंच गए।
वहां अपनी सूझबूझ से न केवल कॉलेज में पढ़ाई करके वकालत की डिग्री हासिल की, बल्कि परीक्षा देकर सैन्य अधिकारी भी बन गए। अपनी जिंदगी की परवाह किए बिना यह जांबाज पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य प्रमुख जियाउल हक के नजदीकियों में शामिल हो गया।
इसी नजदीकी के बलबूते कौशिक ने न केवल पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रमों की सूचनाएं भारत भेजी, बल्कि सामरिक महत्व की कई सूचनाओं को यहां भेजा। पाकिस्तान में 1983 में पकड़े जाने से पहले रवींद्र कई बार भारत आया लेकिन अपने खुफिया मिशन के बारे में न परिवार को बताया और न ही साथियों को। उसके मिशन का पता तब लगा, जब वह पाकिस्तान में पकड़ा गया।
गौरतलब है कि 15 अगस्त को यशराज चोपड़ा बैनर की रिलीज हो रही ‘एक था टाइगर’ पर इन दिनों विवाद उठा हुआ है। जांबाज रवींद्र कौशिक के परिजनों का दावा है कि यह फिल्म उनके सपूत की रियल लाइफ पर बनी है और इसके लिए उनसे अनुमति तक नहीं ली गई। मामला अभी जयपुर हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
जानिए रवींद्र कौशिक के हर पहलू को
बॉर्डर पार कर पहुंचे पाकिस्तान और बन गए सैन्य अफसर ट्रेनिंग के बाद रवींद्र कौशिक एक खुफिया मिशन के तहत वर्ष 1975 में बॉर्डर पार करके पाकिस्तान पहुंचे। रॉ ने उन्हें अंडर कवर रखते हुए नबी अहमद नाम दिया। नबी अहमद ने वहां रहते हुए मूल नागरिकता हासिल की और एक कॉलेज में प्रवेश लेकर वकालत की डिग्री ले ली। इसके बाद परीक्षा देकर पाकिस्तानी आर्मी में अधिकारी पद पर तैनात हो गए।
अपनी काबिलियत व योग्यता से रवींद्र कौशिक पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जियाउल हक के नजदीकी बन गए और यहां सूचनाएं भेजने लगे। वर्ष 1979 में रवींद्र ने पाकिस्तान में मुस्लिम युवती अमानत से शादी कर ली और बाद में उन्हें एक बेटा भी हुआ।
मिशन पूरा होने से पहले ही पकड़े गए रवींद्र
वर्ष 1983 में रवींद्र का खुफिया मिशन पूरा होने वाला था। मिशन पूरा होने से कुछ दिन पहले ही रॉ ने एक और एजेंट को पाकिस्तान भेजने का निर्णय लिया। बदकिस्मती से यह एजेंट बॉर्डर पर पाक रेंजर्स के हत्थे चढ़ गया। रेंजर्स की यातनाएं वह सह नहीं पाया और उसने मिशन के बारे में सब बता दिया, फिर पाक रेंजर्स ने 1983 में पाकिस्तान के जिन्ना गार्डन से रवींद्र कौशिक को पकड़ लिया।
इसी गार्डन में एजेंट व कौशिक में मुलाकात होनी थी। पाकिस्तान ने कौशिक पर मुकदमा चलाया और 1985 में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। तत्कालीन राष्ट्रपति ने 1990 में फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। 21 नवंबर 2001 को कौशिक की पाकिस्तान में बीमारी से मृत्यु हो गई।
मिशन टू पाकिस्तान से ब्लैक टाइगर की उपाधि
रवींद्र की जांबाजी व कारनामों को देखते हुए तत्कालीन गृहमंत्री ने उन्हें ब्लैक टाइगर की उपाधि से भी सम्मानित किया। रॉ के रिटायर्ड ज्वाइंट डायरेक्टर एमके धर ने उन पर ‘मिशन टू पाकिस्तान’ किताब लिखी, जिसमें उन्हें सर्वश्रेष्ठ जासूस बताया गया। इसके अलावा उनकी जीवनी पर ‘ऑपरेशन ट्रिपल एक्स’ किताब भी लिखी गई। बताया जाता है कि मिशन के दौरान रवींद्र ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम सहित कई आतंकी साजिशों की सूचनाएं यहां भेजी।
‘रवींद्र नहीं, वो तो विनोद खन्ना था’
दुनिया के लिए भले ही वो रवींद्र कौशिक था लेकिन हमारे लिए वह आज भी विनोद खन्ना है। कद-काठी, बाल, कपड़े पहनने, बोलने व चलना-फिरना सब विनोद खन्ना जैसा तो था। एसडी कॉलेज में वर्ष 1972 में सब उसे रवींद्र के नाम से कम और विनोद खन्ना के नाम से ज्यादा जानते थे।
रवींद्र की एक खासियत थी। जहां भी जाता, सब उसके दीवाने हो जाते। नाचना, गाना और एक्टिंग तो जैसे उसके खून में बसी थी। हर समय हंसना और हंसाना। मुझे आज भी ध्यान है, 2 मई 1974 को मेरी शादी हुई। रवींद्र न केवल मेरी शादी में शरीक हुआ, बल्कि पूरे समय नाचता रहा और बरातियों को भी खूब नचाया।
कॉलेज में भी जितने कार्यक्रम होते, सब में बढ़-चढ़कर भाग लेता। अपने हुनर से स्टेज के किरदार में वो ऐसी जान फूंकता कि सब देखते रह जाते। उसके इसी हुनर ने उसे रवींद्र कौशिक से नबी अहमद बनाया और बाद में देश के लिए वो ‘ब्लैक टाइगर’ बना।
राजकुमार गौड़, पूर्व अध्यक्ष यूआईटी, (गौड़ व कौशिक एसडी कॉलेज में सहपाठी थे।)
स्टेज शो करता हुआ बन गया रॉ का एजेंट
11 अप्रैल 1952 को श्रीगंगानगर शहर के पुरानी आबादी में जन्मे रवींद्र कौशिक को बचपन से ही स्टेज शो करने का शौक था। उनका हर शो देशभक्ति से जुड़ा होता था और उनका किरदार इसमें जुल्म सह रहे व्यक्ति का होता था।
वर्ष 1973 में लखनऊ में आयोजित यूथ फेस्टिवल में एक शो में जासूस का उनका सजीव किरदार वहां मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रॉ के वरिष्ठ अधिकारी को इतना पसंद आया कि उन्होंने रवींद्र कौशिक को रॉ एजेंट बनने का प्रस्ताव दिया, जो कौशिक ने स्वीकार कर लिया। इसके बाद उन्हें ट्रेनिंग भी दी गई।
जानिए क्या हैं ‘ब्लैक टाइगर’ व ‘फिल्मी टाइगर’ की समानताएं
1. भारत की प्रमुख खुफिया एजेंसी रॉ ने मिशन के लिए रवींद्र कौशिक को अपना एजेंट बनाया था। फिल्म में भी सलमान खान ने रॉ एजेंट की भूमिका निभाई है।
2. खुफिया मिशन के तहत रवींद्र कौशिक को पाकिस्तान भेजा गया था। फिल्म में भी सलमान को मिशन पूरा करने के लिए पाकिस्तान भेजा जाता है।
3. मिशन की सफलता के लिए रवींद्र कौशिक ने पाकिस्तान में शादी रचाई थी। फिल्म में सलमान, कैटरीना से मोहब्बत करके शादी रचाता है।
4. रवींद्र कौशिक को उसकी जांबाजी के लिए ‘ब्लैक टाइगर’ उपाधि दी गई थी। इसके बाद से उसे टाइगर के नाम से जाना जाने लगा, जबकि यशराज चोपड़ा बैनर की इस फिल्म का नाम भी ‘एक था टाइगर’ है।
5. रवींद्र कौशिक की मृत्यु आज भी उनके परिवार के लिए रहस्य है। वजह, पाकिस्तान ने रवींद्र का शव उनके परिवार को नहीं सौंपा था। इस फिल्म में भी ऐसा ही हुआ। फिल्म में सलमान की मृत्यु के बाद शव परिजनों को नहीं सौंपा गया।
वहां अपनी सूझबूझ से न केवल कॉलेज में पढ़ाई करके वकालत की डिग्री हासिल की, बल्कि परीक्षा देकर सैन्य अधिकारी भी बन गए। अपनी जिंदगी की परवाह किए बिना यह जांबाज पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य प्रमुख जियाउल हक के नजदीकियों में शामिल हो गया।
इसी नजदीकी के बलबूते कौशिक ने न केवल पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रमों की सूचनाएं भारत भेजी, बल्कि सामरिक महत्व की कई सूचनाओं को यहां भेजा। पाकिस्तान में 1983 में पकड़े जाने से पहले रवींद्र कई बार भारत आया लेकिन अपने खुफिया मिशन के बारे में न परिवार को बताया और न ही साथियों को। उसके मिशन का पता तब लगा, जब वह पाकिस्तान में पकड़ा गया।
गौरतलब है कि 15 अगस्त को यशराज चोपड़ा बैनर की रिलीज हो रही ‘एक था टाइगर’ पर इन दिनों विवाद उठा हुआ है। जांबाज रवींद्र कौशिक के परिजनों का दावा है कि यह फिल्म उनके सपूत की रियल लाइफ पर बनी है और इसके लिए उनसे अनुमति तक नहीं ली गई। मामला अभी जयपुर हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
जानिए रवींद्र कौशिक के हर पहलू को
बॉर्डर पार कर पहुंचे पाकिस्तान और बन गए सैन्य अफसर ट्रेनिंग के बाद रवींद्र कौशिक एक खुफिया मिशन के तहत वर्ष 1975 में बॉर्डर पार करके पाकिस्तान पहुंचे। रॉ ने उन्हें अंडर कवर रखते हुए नबी अहमद नाम दिया। नबी अहमद ने वहां रहते हुए मूल नागरिकता हासिल की और एक कॉलेज में प्रवेश लेकर वकालत की डिग्री ले ली। इसके बाद परीक्षा देकर पाकिस्तानी आर्मी में अधिकारी पद पर तैनात हो गए।
अपनी काबिलियत व योग्यता से रवींद्र कौशिक पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जियाउल हक के नजदीकी बन गए और यहां सूचनाएं भेजने लगे। वर्ष 1979 में रवींद्र ने पाकिस्तान में मुस्लिम युवती अमानत से शादी कर ली और बाद में उन्हें एक बेटा भी हुआ।
मिशन पूरा होने से पहले ही पकड़े गए रवींद्र
वर्ष 1983 में रवींद्र का खुफिया मिशन पूरा होने वाला था। मिशन पूरा होने से कुछ दिन पहले ही रॉ ने एक और एजेंट को पाकिस्तान भेजने का निर्णय लिया। बदकिस्मती से यह एजेंट बॉर्डर पर पाक रेंजर्स के हत्थे चढ़ गया। रेंजर्स की यातनाएं वह सह नहीं पाया और उसने मिशन के बारे में सब बता दिया, फिर पाक रेंजर्स ने 1983 में पाकिस्तान के जिन्ना गार्डन से रवींद्र कौशिक को पकड़ लिया।
इसी गार्डन में एजेंट व कौशिक में मुलाकात होनी थी। पाकिस्तान ने कौशिक पर मुकदमा चलाया और 1985 में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। तत्कालीन राष्ट्रपति ने 1990 में फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। 21 नवंबर 2001 को कौशिक की पाकिस्तान में बीमारी से मृत्यु हो गई।
मिशन टू पाकिस्तान से ब्लैक टाइगर की उपाधि
रवींद्र की जांबाजी व कारनामों को देखते हुए तत्कालीन गृहमंत्री ने उन्हें ब्लैक टाइगर की उपाधि से भी सम्मानित किया। रॉ के रिटायर्ड ज्वाइंट डायरेक्टर एमके धर ने उन पर ‘मिशन टू पाकिस्तान’ किताब लिखी, जिसमें उन्हें सर्वश्रेष्ठ जासूस बताया गया। इसके अलावा उनकी जीवनी पर ‘ऑपरेशन ट्रिपल एक्स’ किताब भी लिखी गई। बताया जाता है कि मिशन के दौरान रवींद्र ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम सहित कई आतंकी साजिशों की सूचनाएं यहां भेजी।
‘रवींद्र नहीं, वो तो विनोद खन्ना था’
दुनिया के लिए भले ही वो रवींद्र कौशिक था लेकिन हमारे लिए वह आज भी विनोद खन्ना है। कद-काठी, बाल, कपड़े पहनने, बोलने व चलना-फिरना सब विनोद खन्ना जैसा तो था। एसडी कॉलेज में वर्ष 1972 में सब उसे रवींद्र के नाम से कम और विनोद खन्ना के नाम से ज्यादा जानते थे।
रवींद्र की एक खासियत थी। जहां भी जाता, सब उसके दीवाने हो जाते। नाचना, गाना और एक्टिंग तो जैसे उसके खून में बसी थी। हर समय हंसना और हंसाना। मुझे आज भी ध्यान है, 2 मई 1974 को मेरी शादी हुई। रवींद्र न केवल मेरी शादी में शरीक हुआ, बल्कि पूरे समय नाचता रहा और बरातियों को भी खूब नचाया।
कॉलेज में भी जितने कार्यक्रम होते, सब में बढ़-चढ़कर भाग लेता। अपने हुनर से स्टेज के किरदार में वो ऐसी जान फूंकता कि सब देखते रह जाते। उसके इसी हुनर ने उसे रवींद्र कौशिक से नबी अहमद बनाया और बाद में देश के लिए वो ‘ब्लैक टाइगर’ बना।
राजकुमार गौड़, पूर्व अध्यक्ष यूआईटी, (गौड़ व कौशिक एसडी कॉलेज में सहपाठी थे।)
स्टेज शो करता हुआ बन गया रॉ का एजेंट
11 अप्रैल 1952 को श्रीगंगानगर शहर के पुरानी आबादी में जन्मे रवींद्र कौशिक को बचपन से ही स्टेज शो करने का शौक था। उनका हर शो देशभक्ति से जुड़ा होता था और उनका किरदार इसमें जुल्म सह रहे व्यक्ति का होता था।
वर्ष 1973 में लखनऊ में आयोजित यूथ फेस्टिवल में एक शो में जासूस का उनका सजीव किरदार वहां मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रॉ के वरिष्ठ अधिकारी को इतना पसंद आया कि उन्होंने रवींद्र कौशिक को रॉ एजेंट बनने का प्रस्ताव दिया, जो कौशिक ने स्वीकार कर लिया। इसके बाद उन्हें ट्रेनिंग भी दी गई।
जानिए क्या हैं ‘ब्लैक टाइगर’ व ‘फिल्मी टाइगर’ की समानताएं
1. भारत की प्रमुख खुफिया एजेंसी रॉ ने मिशन के लिए रवींद्र कौशिक को अपना एजेंट बनाया था। फिल्म में भी सलमान खान ने रॉ एजेंट की भूमिका निभाई है।
2. खुफिया मिशन के तहत रवींद्र कौशिक को पाकिस्तान भेजा गया था। फिल्म में भी सलमान को मिशन पूरा करने के लिए पाकिस्तान भेजा जाता है।
3. मिशन की सफलता के लिए रवींद्र कौशिक ने पाकिस्तान में शादी रचाई थी। फिल्म में सलमान, कैटरीना से मोहब्बत करके शादी रचाता है।
4. रवींद्र कौशिक को उसकी जांबाजी के लिए ‘ब्लैक टाइगर’ उपाधि दी गई थी। इसके बाद से उसे टाइगर के नाम से जाना जाने लगा, जबकि यशराज चोपड़ा बैनर की इस फिल्म का नाम भी ‘एक था टाइगर’ है।
5. रवींद्र कौशिक की मृत्यु आज भी उनके परिवार के लिए रहस्य है। वजह, पाकिस्तान ने रवींद्र का शव उनके परिवार को नहीं सौंपा था। इस फिल्म में भी ऐसा ही हुआ। फिल्म में सलमान की मृत्यु के बाद शव परिजनों को नहीं सौंपा गया।
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