Friday, August 3, 2012

एक ऐसा वार कि इधर बहने लगे आंखों से आंसू और उधर वे हो उठे आग-बबूला

तलवार उठानेवाले की आंखों में क्या होना चाहिए – लहू, उग्रता, आक्रामकता। मगर लंदन ओलिंपिक में दक्षिण कोरिया की तलवारबाज़ शिन लाम की आंखों में मुक़ाबले के बाद आंसू ही आंसू थे। सेमीफ़ाइनल में हारने के बाद वो फूट-फूटकर रोने लगीं, क्योंकि उनकी हार कोई सामान्य हार नहीं थी।


दरअसल, मुकाबले के दौरान उन्हें और उनके कोच को लगा कि वो जीत चुकी हैं जब अचानक उन्होंने देखा कि घड़ी को रीसेट कर दिया गया, जो समय ज़ीरो था वो अचानक वन हो गया।



और जैसे ही समय मिला, जर्मन तलवारबाज़ और चार साल पहले की स्वर्ण विजेता ने ऐसा वार किया कि उसके आधार पर वो फ़ाइनल में पहुंच गईं।



इसके बाद आग-बबूला हो उठे दक्षिण कोरियाई कोच ने फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील की, फ़ैसला आधे घंटे बाद आया, अपील नामंज़ूर हो गई और शिन लाम एक बार फिर से आँसुओं में डूब गईं।



यही नहीं वो मुक़ाबले की जगह पर ही जम गईं, जिससे लोगों को लगा कि कहीं वे धरना देने तो नहीं बैठ गईं।



फिर एक अधिकारी समझाने-बुझाने आया मगर वो जाने को ही तैयार नहीं थीं और रोए जा रही थीं।



अंततः मुक़ाबला पूरा होने के एक घंटे के बाद वो वापस लौटीं।



वो रोती-बिलखती अखाड़े से बाहर निकल रही थीं और दर्शक जमकर ताली बजा रहे थे, खुश तो होंगे ही वो, आए थे गंभीर मुक़ाबला देखने, देखने को मिल गया ड्रामा, जिसमें रहस्य-रोमांच-ऐक्शन-इमोशन सब शामिल था।

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