मानपुर (श्योपुर)। चंबल नदी में उफान आने पर टीले पर फंसे पांच
लोग पूरी रात जिंदगी-मौत से संघर्ष करते रहे और अफसर स्कूल में चैन की नींद
सोते रहे। सोमवार की रात नौ बजे अंधेरे के कारण राहत एवं बचाव कार्य बंद
होने के बाद कुछ अफसर तो एक-एक कर मौके से निकल लिए। जबकि टॉर्च की रोशनी
दिखाने के लिए जो अफसर रात में मौके पर रुके वे भी थोड़ी ही देर बाद सोने
के लिए गांव वालों से बिस्तर मांगने पहुंच गए। उधर जब गांव वालों ने
खटिया-पलंग देने से मना कर दिया तो अफसर व पुलिसकर्मी स्कूल में ही सो गए।
गनीमत रही कि मंगलवार की सुबह 18 घंटे बाद टीले पर फंसी पांच जिंदगियों को
मोटरबोट के सहारे सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।
हमने तो जिंदगी की आस ही छोड़ दी थी
पानी के बीच टीले पर फंसने पर बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे। पानी लगातार हमारी ओर बढ़ रहा था। रात का घुप्प अंधेरा और तेज बहाव की आवाज डर बढ़ा रही थी। हम लोग मदद के लिए रात भर चीखते रहे। बच्चे ठंड से कांप रहे थे और महिलाओं का रो-रोकर बुरा हाल था। चंबल के रौद्र रूप को देखकर हमने तो जिंदगी की आस ही छोड़ दी थी। फिर भी बच्चे और पत्नी को यही समझा रहे थे, कि सुबह होते ही घर चलेंगे। जैसे-तैसे रात कटी। सुबह होते ही गांव के लोग दिखे। उम्मीद बंधी। पानी के बीच से बाहर आने पर ही जान में जान आई। यह पीड़ा 18 घंटे तक पानी के बीच टीले पर जिंदगी और मौत से जूझने के बाद परिवार सहित सुरक्षित निकले रामअवतार कीर ने बयां की।
हमने तो जिंदगी की आस ही छोड़ दी थी
पानी के बीच टीले पर फंसने पर बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे। पानी लगातार हमारी ओर बढ़ रहा था। रात का घुप्प अंधेरा और तेज बहाव की आवाज डर बढ़ा रही थी। हम लोग मदद के लिए रात भर चीखते रहे। बच्चे ठंड से कांप रहे थे और महिलाओं का रो-रोकर बुरा हाल था। चंबल के रौद्र रूप को देखकर हमने तो जिंदगी की आस ही छोड़ दी थी। फिर भी बच्चे और पत्नी को यही समझा रहे थे, कि सुबह होते ही घर चलेंगे। जैसे-तैसे रात कटी। सुबह होते ही गांव के लोग दिखे। उम्मीद बंधी। पानी के बीच से बाहर आने पर ही जान में जान आई। यह पीड़ा 18 घंटे तक पानी के बीच टीले पर जिंदगी और मौत से जूझने के बाद परिवार सहित सुरक्षित निकले रामअवतार कीर ने बयां की।
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