Friday, April 6, 2012

किरण बेदी ने स्वीकारा वो सच, जिससे जनता है अबतक अनजान


भोपाल। वह आकर्षक हैं। उनकी आंखों में एक चमक है। उनकी बातों में एक दहक है। सच, साहस और सादगी की सशक्त प्रतिमूर्ति वह है डॉ. किरण बेदी। वे जब पुलिस में थी तो पुलिस प्रशासन को आड़े हाथों लेती थीं, आज भ्रष्टाचार की लड़ाई में राजनेताओं को। इनकी गर्जना देखने योग्य होती है और जब वे मुखातिब होती है जनता से तो उनकी समझाइश दिल की गहराई तक उतरती चली जाती हैं।

उनका एक-एक शब्द दमकता मोती लगता है क्योंकि उन शब्दों में सच्चाई की आभा है। वे जब बोलती है तो उनकी धाराप्रवाह शैली मंत्रमुग्ध कर देती हैं। वे कहीं अटकती नहीं, वे कहीं भटकती नहीं और खटकने का तो सवाल ही नहीं उठता। पेश है भोपाल भास्कर उत्सव में मुख्य वक्ता के रूप में आईं डॉ. किरण बेदी से सिटी भास्कर की खास बातचीत..

नारी की अदम्य शक्ति की प्रतीक डॉ. किरण बेदी सहजता से कहती है मैंने पुलिस सेवा इसलिए जॉइन की थी क्योंकि यह वह सेवा है जो तुरंत न्याय देती है। यहां प्यार और पितृवत धमकी के साथ सुधार और सेवा की जाती है। मैंने इसी नजरिए से पुलिस सेवा को अपनाया था। समय के साथ मैंने पुलिस के बदलते रूप और बदलती भूमिका देखी।

यहां रहते हुए ही यह जाना कि पुलिस में सुधार क्यों नहीं हो रहा? कौन यह सुधार होने नहीं दे रहा? अगर सब कुछ जानते हुए भी मैं चुप रहती तो इसका मतलब है मैं इस ओहदे की गुलाम हूं। मैं इस व्यवस्था की गुलाम हूं। मैंने अपनी चुप्पी को तोड़ना पसंद किया और बाहर आ गई। अब लगा देश में व्याप्त करप्शन के खिलाफ कुछ किया जाए तो अन्ना जी के साथ मुहिम में शामिल हो गई।

पुलिस की जिम्मेदारी आम जनता को नहीं पता

आम आदमी के सामने चुनौती है यह बिलकुल सच है, वह सुधार किससे मांगे और कैसे मांगे? आज हमारे राज्यों में अन्तराष्ट्रीय मानकों के अनुसार पुलिस बहुत कम हैं लेकिन कितने लोगों में यह जागरूकता है? हममें से कितने लोग जानते हैं कि थाने की पुलिस का बजट राज्य से तय होता है? थाने के कर्मचारियों की विवशता से कितना परिचय है हमारा? हमारे थाने के जवान कभी भी, कहीं भी, किसी भी जगह तैनात कर दिए जाते हैं, उनकी असली जिम्मेदारियां क्या हैं, क्या आम जनता को पता है?

पुलिस प्रशासन बेफिक्र

पुलिस प्रशासन बेफिक्र है। जब कोई सवाल करने वाला ही नहीं है तो जवाबदेही तो गायब होगी ही। आम जनता राज्य की पुलिस बढ़ाने के लिए मांग नहीं करती। जब मांग नहीं है तो आपूर्ति कोई क्यों करेगा? मांग इसलिए नहीं है कि जानकारी का अभाव है। जनता के मौन में अज्ञानता छुपी है। जनता को अपनी जानकारी बढ़ाकर शहर की पुलिस व्यवस्था को समझना चाहिए। शहर के मीडिया की जिम्मेदारी है कि उस सारी पुलिस व्यवस्था को प्रकाशित करें। जिस तरह हम पानी, सड़क और बिजली के लिए एक होकर सड़क पर आ जाते हैं वैसे सुरक्षा के मुद्दे पर एक आवाज क्यों नहीं बनते?

भास्कर वुमन सेमीनार रहा शानदार

भास्कर वुमन सेमीनार रहा शानदार, मुझे लगा कि जितने लोगों ने मुझे सुना वे सिर्फ मुझे सुनने नहीं आए हैं बल्कि वे मेरे शब्दों से, अनुभव से कुछ बदलाव लाना चाहते हैं, सुधार लाना चाहते हैं। वे जिम्मेदारी निभाने के लिए तत्पर दिखाई दिए। उनमें मैंने शहर को सुधारने की छटपटाहट देखी। वे कॉंट्रिब्यूशन करना चाहते हैं इससे बढ़कर कोई बात नहीं हो सकती।

जब शहर में इतनी चेतना आ जाए तो उसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई सिर्फ अन्ना जी या मेरी नहीं है। यह हम सबकी लड़ाई है। साथ मिलकर इसे जीतना होगा। उन्होंने कहा कि जिस नेता को चुनिये उससे खुला मंच मांगिये, ताकि सौ-दो सौ लोगों के बीच उसकी जवाबदेही तय हो सके। आप विधायक चुनने के लिए वोट दे रहे हैं, इसलिए उनसे ही जवाब मांगें।

ईमानदारी और देशभक्ति जरूरी

हम सब मतदाताओं को यह भी संकल्प लेना होगा कि अपराधी और भ्रष्ट लोग जनप्रतिनिधि नहीं चुने जायें। प्रदेश के विकास के लिए ईमानदारी और देशभक्ति जरूरी है। तभी देश खुशहाल होगा। अगले चुनाव के पहले ‘राइट टू रिजेक्ट’ का अन्ना हजारे का फामरूला सबके सामने होगा। हम अक्सर ऐसा नेता चुन लेते हैं जिसे जेल में होना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए।

युवा भी पीछे नहीं

यंगस्टर्स को चाहिए कि वे सिर्फ दिखावे और फैशन में अपना समय बर्बाद न करे। फ्यूचर की प्लानिंग के साथ अपना करियर चुने। पहले अपने को सक्षम बनाओं ताकि आगे अपने परिवार और देश के लिए कुछ कर सको।अन्ना के आंदोलन की बहुत बड़ी ताकत युवा शक्ति है। युवा शक्ति ने पिछले आंदोलन में दिखा दिया कि जब देश को युवा शक्ति की जरूरत पड़ी तो वे करप्शन की लड़ाई में भी पीछे नहीं रहे।

No comments:

Post a Comment