हमारे धर्म ग्रंथों में दो तरह की
विद्याओं का उल्लेख किया गया है। परा और अपरा। इन विद्याओं के नाम आपने कई
बार सुने होंगे लेकिन ये विद्याएं क्या हैं, यह बहुत कम ही लोग जानते हैं।
ये विद्याएं जितनी रहस्यमयी हैं, उतनी ही रोचक भी हैं।
हमारे धर्म ग्रंथों में वेदों से लेकर पुराणों तक इन विद्याओं के बारे में बहुत विस्तार से बताया गया है। हम आपको आज इन विद्याओं के अर्थ और इनके उपयोग के बारे में बता रहे हैं। मुंडकोपनिषद में इन विद्याओं की ही चर्चा की गई है। इस उपनिषद में इन विद्याओं का जो अर्थ और महत्व बताया गया है वह बहुत सरल और जल्दी समझ में आने वाला है।
अभी तक हम अपरा शक्तियों या विद्याओं का अर्थ जादू-टोने से ही लगाते हैं लेकिन इसका अर्थ बहुत ही विस्तृत है। अपरा विद्या केवल जादू-टोने से जुड़ी नहीं है। इस उपनिषद में यह बताया गया है कि अपरा विद्या वह है जिसके द्वारा परलोक यानी स्वर्गादि लोकों के सुख, साधनों के बारे में जाना जा सकता है, इन्हीं विद्याओं के जरिए इन्हें पाने के मार्ग भी पता किए जाते हैं। ये सुख और साधन कैसे रचे जाते हैं? इन्हें कैसे इस लोक में पाया जा सकता है? इनका मानव जीवन में क्या महत्व है?
ऐसी सभी बाते पता चलती हैं। इसे ही अपरा विद्या कहते हैं। इसमें चारों वेद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद भी शामिल हैं। इनके अलावा
1. वेदों का पाठ करने की विद्या को शिक्षा,
2. यज्ञ की विधियों की विद्या यानी कल्प,
3. शब्द प्रयोग और शब्द बोध की विद्या यानी व्याकरण,
4. वैदिक शब्द कोष के ज्ञान यानी कि निरुक्त,
5. वैदिक छंदों के भेद को बताने वाली विद्या छंद और
6. नक्षत्रों की स्थिति का ज्ञान कराने की विद्या ज्योतिष भी अपरा विद्या में शामिल हैं। इस तरह कुल 10 अपरा विद्याएं होती हैं।
हमारे धर्म ग्रंथों में वेदों से लेकर पुराणों तक इन विद्याओं के बारे में बहुत विस्तार से बताया गया है। हम आपको आज इन विद्याओं के अर्थ और इनके उपयोग के बारे में बता रहे हैं। मुंडकोपनिषद में इन विद्याओं की ही चर्चा की गई है। इस उपनिषद में इन विद्याओं का जो अर्थ और महत्व बताया गया है वह बहुत सरल और जल्दी समझ में आने वाला है।
अभी तक हम अपरा शक्तियों या विद्याओं का अर्थ जादू-टोने से ही लगाते हैं लेकिन इसका अर्थ बहुत ही विस्तृत है। अपरा विद्या केवल जादू-टोने से जुड़ी नहीं है। इस उपनिषद में यह बताया गया है कि अपरा विद्या वह है जिसके द्वारा परलोक यानी स्वर्गादि लोकों के सुख, साधनों के बारे में जाना जा सकता है, इन्हीं विद्याओं के जरिए इन्हें पाने के मार्ग भी पता किए जाते हैं। ये सुख और साधन कैसे रचे जाते हैं? इन्हें कैसे इस लोक में पाया जा सकता है? इनका मानव जीवन में क्या महत्व है?
ऐसी सभी बाते पता चलती हैं। इसे ही अपरा विद्या कहते हैं। इसमें चारों वेद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद भी शामिल हैं। इनके अलावा
1. वेदों का पाठ करने की विद्या को शिक्षा,
2. यज्ञ की विधियों की विद्या यानी कल्प,
3. शब्द प्रयोग और शब्द बोध की विद्या यानी व्याकरण,
4. वैदिक शब्द कोष के ज्ञान यानी कि निरुक्त,
5. वैदिक छंदों के भेद को बताने वाली विद्या छंद और
6. नक्षत्रों की स्थिति का ज्ञान कराने की विद्या ज्योतिष भी अपरा विद्या में शामिल हैं। इस तरह कुल 10 अपरा विद्याएं होती हैं।
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